क्यों हुआ था
हल्दीघाटी का युद्ध
(Battle of Haldighati)- क्या है सच
हल्दीघाटी युद्ध का, क्या
सच में महाराणा
प्रताप अकबर से
हर गए थे
या अकबर को
मुँह की कहानी
पड़ी थी आइये
जानते है Famous Battle of Haldighati War और Manarana Pratap Bravery Stories
हल्दीघाटी में नहीं
हुई
थी
लड़ाई
4 घंटे
की
लड़ाई
थी
हल्दीघाटी,
राणा
ने
की
थी
मुगलों
की
हालत
पतली
मगर ताकत का
बंटवारा
सिर्फ
सैनिकों
की
गिनती
से
नहीं
होता-
मुगलों
के
पास
बेहतर
हथियार
और
रणनीति
थी
दोस्तों या तो
हमे इतिहास की
समझ नहीं या
फिर पहले की
किताबो में लिखा
सच नहीं ।
ये मै इसलिए
कह रहा हु
की अभी कुछ
दिन पहले एक
नया इतिहास में
बताया गया कि
हल्दीघाटी के युद्ध
में महाराणा प्रताप
ने अकबर को
हरा दिया था
। लेकिन उसके
विपरीत हमने अकबर
कि जीत और
उसके प्रतापी होने
के किस्से ही
सुने है ।
पर असल में
ऐसा नहीं था,
सही में महाराणा
प्रताप एक महान
राजा था और
कभी युद्ध में
शिकस्त नहीं खाई
।
कुछ दिन पहले
राजस्थान सरकार के मंत्री
मोहनलाल गुप्ता ने सुझाव
दिया कि हल्दीघाटीके युद्ध मेंअकबर कि जगहराणा प्रताप कोविजेता दिखाया जाये ।
और ये सच
भी है क्योकि
अंग्रेजो कि यह
एक रणनीति थी
जिसके द्वारा मुग़ल
सल्तनत ब्रिटिश शासक के
अधीन आने को
राजी हुए ।
अब राजस्थान के
इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने
एक शोध जारी
किया है |
हल्दीघाटी की लड़ाई हल्दीघाटी में हुई ही नहीं थी
शर्मा के हिसाब
से राणा प्रताप
हल्दीघाटी युद्ध के बाद
जमीनों के पट्टे
जारी करते रहे
। इस हिसाब
से महाराणा प्रताप
राजा ही थे
और हल्दीघाटी युद्ध
में उनकी विजय
हुई थी ।
अगर वो हार
जाते तो राजा
कि तरह शाहक
करके लोगो को
पट्टे कैसे जारी
करते ?
लोगों का एक
खास तबका इस
नए ‘इतिहास’को
बहुत पसंद कर
रहा है. लेकिन
सच्चाई क्या मानी
जाए? आइए नजर
डालते हैं जून
1576 में हुए हल्दीघाटी
के इस युद्ध
की एेसी बातों
पर जो अब
तक हमारी जानकारी
में रही है.
ये जानकारियां सदियों
तक सार्वजनिक दायरे
में थी, और
कैसे अब एकाएक
सदियों के तथ्यों
से परे एक
नया इतिहास रचने
की कोशिश हो
रही है. पढ़ें
और खुद तय
करें-
हल्दीघाटी में नहीं
हुई
थी
लड़ाई
हल्दीघाटी राजस्थान कि दो
पहाड़ियों के बिच
एक पतली सी
घाटी हैं और
यहाँ कि मिट्टी
रंग हल्दी जैसा
होने के कारण
इसे हल्दीघाटी कहा
जाता है ।
इतिहास का ये
प्रसिद्ध युद्ध घाटी से
शुरू हुआ लेकिन
महाराणा प्रताप वह नहीं
लड़े, उनकी लड़ाई सवाई
मानसिंह के नेतृत्व
वाली अकबर कि
सेना से खमनौर
में हुई थी
। मुगल इतिहासकार अबुल फजल
ने
इसे
“खमनौर
का
युद्ध”कहा
है.
राणा प्रताप के
चारण
कवि
रामा
सांदू
‘झूलणा
महाराणा
प्रताप
सिंह
जी
रा’
में
लिखते
हैः
“महाराणा
प्रताप
अपने
अश्वारोही
दल
के
साथ
हल्दीघाटी
पहुंचे,
परंतु
भयंकर
रक्तपात
खमनौर
में
हुआ.”
4 घंटे
की
लड़ाई
थी
हल्दीघाटी,
राणा
ने
की
थी
मुगलों
की
हालत
पतली
हल्दीघाटी के युद्ध
की दो तारीखें
मिलती हैं. पहली
18 जून और दूसरी
21 जून. इन दोनों
में कौन सी
सही है, एकदम
निश्चित कोई भी
नहीं है. मगर
सारे विवरणों में
एक बात तय
है कि ये
युद्ध सिर्फ 4 घंटे
चला था |
सेनाबल में था
बहुत अंतर
राणा प्रताप की सेना
मुगलों की तुलना
में एक चौथाई
थी. सेना की
गिनती की ही
बात नहीं थी.
कई मामलों में
मुगलों के पास
बेहतर हथियार और
रणनीति थी. मुगल
अपनी सेना की
गिनती नहीं बताते
थे.
मुगलों के इतिहासकार
बदांयूनी लिखकर गए हैं,
“5,000 सवारों के साथ
कूच किया.” दुश्मन
को लग सकता
था कि 5,000 की
सेना है मगर
ये असल में
सिर्फ घो़ड़ों की
गिनती है, पूरी
सेना की नहीं.
इतिहास में सेनाओं
की गिनती के
अलग-अलग मत
हैं |
मगर ताकत का
बंटवारा
सिर्फ
सैनिकों
की
गिनती
से
नहीं
होता-
मुगलों
के
पास
बेहतर
हथियार
और
रणनीति
थी
मेवाड़ के पास
बंदूकें नहीं थीं.
जबकि मुगल सेना
के पास कुछ
सौ बंदूकें थीं.
राणा प्रताप की
तरफ से प्रसिद्ध
‘रामप्रसाद’ और ‘लूना’
समेत 100 हाथी थे.
मुगलों के पास
इनसे तीन गुना
हाथी थे. मुगल
सेना के सभी
हाथी किसी बख्तरबंद
टैंक की तरह
सुरक्षित होते थे
और इनकी सूंड
पर धारदार खांडे
बंधे होते थे.
राणा प्रताप के
पास चेतक समेत
कुल 3,000 घोड़े थे. मुगल
घोड़ों की गिनती
कुल 10,000 से ऊपर
थी |
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